व्रत पुर्णिमा व्रत की महिमा
ज्येस्ठ महीने के शुक्ल पुर्णिमा के दिन ये पुजा अति लाभ दायक हे। । इस दिन को विवाहित स्त्री विधिवत व्रत का पालन कर अपनी पति कि लंबी आयु और परिवार की शकुशल कामना करती हे। जो की यह पुजा वट के पेड़
पर किया जाता हे इसीलिए इस व्रत का नाम वट पुर्णिमा व्रत हे ।यह पूजन एक विवाहित स्त्री के लिए काफी महत्वपूर्ण हे।
आईए जानते हे इसके पूजन विधि और इसके महत्व
पहले स्त्री को सुबह उठके अपने नित्य कर्म करने के बाद स्नान कर ले । उसके पश्चात नए कपड़े पेहेनकर सौलह श्रिंगार करे । पुजा की सामाग्री को वेत के कटोरे मे रखखे । पुजा की सामग्री मे हल्दी ,चन्दन,कुमकुम, चूड़ी, लाल धागा,लाल कपड़ा, पुस्प ,घी,दिये ,अगरबत्ती ,वेतके पंखे ,कलश जल से भरा हुआ और पाँच प्रकार के फल रखखे ।अब बरगत के पेड़ यानि के वट के वृक्ष के नीचे की जगह साफ करले। वहा पे सत्यवान और सावित्री के प्रतिमा को रखखे और बीच मे यम की प्रतिमा को रखखे । यम की मूर्ति रखते समाय ध्यान दे की सत्यवान की प्रतिमा यम कि प्रतिमा के दाई (लेफ्ट) तरफ हो । अब हल्दी ,चन्दन ,कुमकुम, घी, अगरबत्ती ,पुस्प और पाँच प्रकार के फल से पुजा आरंभ कीजिये । लाल कपड़े से तीनों प्रतिमा को समर्पण करे , चूड़ी सावित्री के प्रतिमा को दे ,वेत/बास के पंखे को समर्पण करे ।अब लाल धागे से बरगत की पेड़ को बांध कर 21या 51 या 108 बार पति की सुरक्षा का स्मरण करके परिक्रमा करे ।पुजा समाप्त करने से पहले सावित्री और सत्यवान की कथा को सम्पूर्ण अवस्य सुने । ये कथा आप ख़ुद से पड़ सकते हे । अगर किसी ब्राह्मण को पुजा करने हेतु बुलाये तो ब्राह्मण को दक्षिणा अवस्य दे । पुजा समाप्त करने के बाद प्रसाद को परिवार को दे और जो पंखे आपने पुजा मे समर्पण किए थे उसी से घर मे अपनी स्वामी की सेवा करे । पूरा दिन उपवास रखने के बाद शाम को मीठा खाकर व्रत को तोड़े ।
ज्येस्ठ महीने के शुक्ल पुर्णिमा के दिन ये पुजा अति लाभ दायक हे। । इस दिन को विवाहित स्त्री विधिवत व्रत का पालन कर अपनी पति कि लंबी आयु और परिवार की शकुशल कामना करती हे। जो की यह पुजा वट के पेड़
पर किया जाता हे इसीलिए इस व्रत का नाम वट पुर्णिमा व्रत हे ।यह पूजन एक विवाहित स्त्री के लिए काफी महत्वपूर्ण हे।
आईए जानते हे इसके पूजन विधि और इसके महत्व
पहले स्त्री को सुबह उठके अपने नित्य कर्म करने के बाद स्नान कर ले । उसके पश्चात नए कपड़े पेहेनकर सौलह श्रिंगार करे । पुजा की सामाग्री को वेत के कटोरे मे रखखे । पुजा की सामग्री मे हल्दी ,चन्दन,कुमकुम, चूड़ी, लाल धागा,लाल कपड़ा, पुस्प ,घी,दिये ,अगरबत्ती ,वेतके पंखे ,कलश जल से भरा हुआ और पाँच प्रकार के फल रखखे ।अब बरगत के पेड़ यानि के वट के वृक्ष के नीचे की जगह साफ करले। वहा पे सत्यवान और सावित्री के प्रतिमा को रखखे और बीच मे यम की प्रतिमा को रखखे । यम की मूर्ति रखते समाय ध्यान दे की सत्यवान की प्रतिमा यम कि प्रतिमा के दाई (लेफ्ट) तरफ हो । अब हल्दी ,चन्दन ,कुमकुम, घी, अगरबत्ती ,पुस्प और पाँच प्रकार के फल से पुजा आरंभ कीजिये । लाल कपड़े से तीनों प्रतिमा को समर्पण करे , चूड़ी सावित्री के प्रतिमा को दे ,वेत/बास के पंखे को समर्पण करे ।अब लाल धागे से बरगत की पेड़ को बांध कर 21या 51 या 108 बार पति की सुरक्षा का स्मरण करके परिक्रमा करे ।पुजा समाप्त करने से पहले सावित्री और सत्यवान की कथा को सम्पूर्ण अवस्य सुने । ये कथा आप ख़ुद से पड़ सकते हे । अगर किसी ब्राह्मण को पुजा करने हेतु बुलाये तो ब्राह्मण को दक्षिणा अवस्य दे । पुजा समाप्त करने के बाद प्रसाद को परिवार को दे और जो पंखे आपने पुजा मे समर्पण किए थे उसी से घर मे अपनी स्वामी की सेवा करे । पूरा दिन उपवास रखने के बाद शाम को मीठा खाकर व्रत को तोड़े ।
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