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Friday, July 13, 2018

महादेव को लिंग के रूप मे क्यू पूजा जाता हे?

लिंग की आकार मे ही क्यू शिव जी को पुजा जाता हे ?

 अक्सर ये विवाद आप कभी किसी अन्य धार्मिक  सोसाइटी का चर्चा या फिर किसी के भड़काओ भाषण मे सुनते हे की हिन्दुवों के भगवान लिंग के रूप मे रहते हे और इसका मज़ाक बनाया जाता हे । इसके लिए आप यूट्यूब पे सर्च करके देखे आपको ऐसे हजारो विडियो देखने को मिलेंगे । मुझे ये विडियो देख कर बड़े अफसोस हुआ जहा कलाम जैसे इतने महान मुस्लिम हे तो कही ऐसे भी लोग रहते हे जिसके मस्तिस्क इतना विकृत किस्म के हे । जो हमारे ईस्वर को विकृत मनो से देखते हे । हर धर्म मे मनुस्य को नेकी की राह मे चलने की सलाह दिया जाता हे ताकि उसको परमेश्वर की प्राप्ति हो । किसी धर्म को मज़ाक बनाना या फिर उसका तिरस्कार करना कोई भी धर्म नहीं सिखाता। ये तो आपकी आस्था ही हे जो आपको आपके धर्म से बांधता हे । मानवीयता का  सीख ही हर धर्म देता हे । खेर अपनी टॉपिक मे आता हु । मैंने ये पोस्ट इसलिए लिक्खा ताकी जो लोग शिव की शिवलिंग के उत्पत्ति का अर्थ न जानते हो वो जान पाये और दूसरे भाइयो को भी जानकारी दे पाये । ताकि भविष्य मे कोई भी शिव लिंग पर प्रश्न न कर पाये । हर धर्म मे ईस्वर को निराकार कहा गया हे । जिसकी कोई आकार नहीं जो परंब्रहम हे जो सर्व ब्यापी हे जो सारी शक्ति की श्रोत हे । जिसकी आदि हे न अंत । इस शून्य मे केवल एक ही ध्वनि गूँजती हे और वो है ॐ।
लिंग शंकर
कुछ नहीं था तब भी ॐ था जब कुछ नहीं रहेगा तब भी ॐ रहेगा । ॐ  ही परंब्रहम हे जिसकी ना तो आकार हे न अंत। लिंग शब्द को आधुनिक समाज मे पुरुष का जनेन्द्रिय या स्त्री की जनेन्द्रिययो को दर्शया जाता हे ।लेकिन हमारे पुरानो मे इसका अर्थ एक चिन्ह के रूप मे किया गया हे । एक  पत्थर को भी लिंग के साथ दर्शाया जा सकता था । या फिर किसी ब्रिक्ष को लिंग  से दर्शया जा सकता था । यही परंब्रहम की कृपा से ही पाचमहाभूत,ब्रह्मांड और  करोरों अन्तरिक्ष का निर्माण आरंभ होता हे। परमेश्वर की कृपा से महत्व तत्व की उत्पत्ति हुई। इनहि महत्व तत्व मे गुण निहित थे तो गुण से त्रि गुण उत्पन्न हूये। और यही त्रिगुण त्रिदेव यानि ब्रह्मा विष्णु महेश के उत्पत्ति का श्रोत हे। सर्व प्रथम रजो गुणो से अहंग का उत्पत्ति हुआ उनसे अहंकार रूप आकार आरंभ हुआ । सत ने आकार लिया श्रीहरी विष्णु के रूप मे और विष्णु  जी की नावी से सृष्टि की रचयिता ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई । दोनों समझ नहीं पा रहे थे उनका सृजन का उद्देस्य क्या है। तभी निराकार परंब्रहम उनसे उनके उत्तरदायित्व के बारे मे बताते हे। उधर अहंग गुण से शब्द  ,स्पर्श,रूप ,रस,गंध इनकी कूटपतती हो गयी थी । इनहि से ब्रह्मा से पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश का निर्माण किया । सरी हरी विष्णु जो की सृष्टि के पालनहार हे उनही से ज्ञानेन्द्रिय,कर्मेन्द्रिय की उत्पत्ति होती रही । लेकिन तमो गुण वैसी ही थी ।ब्रह्मा जी के उत्पत्ति के वक़्त पाच सिर थे और विष्णु जी ने नाव से उत्पत्ति के बाद भी वो विष्णुलोक वैकुंठ से कोसो मिल ऊपर थे ब्रह्मलोक मे । पृथ्वी मे जीवन और बनस्पतियों की उत्पत्ति मे इतना विलीन हो गए की ब्रह्मदेव रजो गुण के वश मे आ गए और स्वयं को सर्वश्रेस्ट सर्वशक्ति मान मानने लगे ।  ब्रह्मदेव  विष्णु जी से मिलने वैकुंठ आ गए और कहने लगे की हम दोनों  अनादिशक्ति के अलावा इस अनंत ब्रह्मांड मे और  कोई आदितिया शक्ति नहीं हे अतः हमे  हम दोनों मे से कौन श्रेस्थ हे ये जांच लेनी चाहिए । श्रीहरी विष्णु जी जो स्वयं महादेव ही है या फिर कहे परंब्रहम ब्रह्मा जी के रजो गुण को भाप गए और समझने के प्रयत्न करने लगे । लेकिन  ब्रह्मा जी अपने अहंकार मे इतने विलीन थे उन्होने विष्णु जी को शक्ति परीक्षण के लिए बादध्य किया और मतभेद आरभ कर दी । दोनों की मतभेद को देख परंब्रहम ने स्वयं को एक ज्योति स्वरूप के रूप मे प्रकट की जिसकी न तो आदि था न अंत । और ये शर्त रखखा के दोनों मे से जो सबसे पहले मेरे किसी भी छोर का अंत निकाल पाएगा वही दोनों मे से श्रेष्ट होगा । श्रीहरी विष्णु परंब्रहम को समझ गए थे परंतु ब्रहमजी ज्योति की ऊपर वाली दिशा की और जाने की इच्छा जताई और विष्णु जी ने नीचे जाने को स्वीकार किया ।दोनों ज्योति के  अंत के खोज मे हजारो ब्रह्म वर्ष  तक  गए परंतु किसी को अंत या आरंभ स्थान नहीं मिला।
shiv image
तभी ब्रह्मा जी को ज्ञात हुआ के परंब्रहम ही सर्वश्रेस्ट हे और परंब्रहम ने शिवा के रूप मे दोनों को दर्शन दिया । इसमे शक्ति और शिव दोनों निहित थे । तभी परंब्रहम के ज्योति से  शृष्टि के संहार हेतु तमो गुण से महादेव  शिव का सृजन किया  । जो की महादेव की श्रीष्टि ज्योति स्वरोपा परंब्रहम से हुआ तो महादेव  ज्योति चिन्ह मे पूजित थे । और ब्रह्मदेव द्वारा रचित कैलाश मे जाकर स्थित हुवे। शिव जो की कल्याणकारी हे और परंब्रहम हे सर्वतत्व के स्वामी हे। उन्हे प्रशन्न करने हेतु ब्रह्मदेव से उत्पन्न सप्तऋषि ज्योति को शिव का ज्योति स्वरूप मानकर तपस्या करते थे पर ज्योति जो की वायु से हलचल होती है उन्हे ज्योति मे ध्यान केन्द्रीद करना मुश्किल होता था । तभी प्रजापति ब्रह्मा जी ने शिव जी आज्ञा से  शिव लिंग यानि शिव का प्रतीक उस दिव्य ज्योति को ध्यान मे रखके उत्पत्ति की थी।
shiv image
ये सारी जानकारी लिंग पुराण जो पुरानो मे श्रेष्ठ पुराण माना उसमे उल्लेख पाया जाता हे । ब्रह्मा जी ने पुराण को १०० करोर स्लोकों मे ग्रथ बनाया था । जो की वेदव्यास ने चार लाख सबदों मे बताया फिर आगे जाकर हमारे पुरानो मे इसको ईग्यारह स्थान मिला । तो दोस्तो शिव लिंग को किसी दूसरे अर्थ से ना जोरे ये शिव के दिव्य ज्योति के प्रतीक है ।

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