आइये जानते हे ईलाहाबाद के कुम्भ मेले के बारे मे
कुम्भ मेला जो की विस्व प्रसिद्ध हे । लाखो करोरों की तादाद मे सैलानी यहा गंगा मे डुबकी लगाने आते हे। कुम्भ मेले जो की १२ वर्सो मे एक बार होता हे । यह उत्सव माघ महीने मे हर वर्ष इलाहाबाद मे माघ मेले के रूप मे और हर ६ वर्ष के अंतराल मे अर्ध कुभ मेले के रूप मे मनाया जाता हे । कुम्भ मेले जो की १२ साल के अंतराल मे होता हे उसकी तिथि कैसे निर्धारित होती हे इसकी कोई सटीक लेखा जोखा नहीं पाया जाता मगर इतना कहा जाता हे की जब बृहस्पति मेष राशि मे और सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करता हे १२ वर्ष के अंतराल मे मेले का आयोजन किया जाता हे । हमारे हिन्दू धर्म की पुरानो मे इस मेले का वर्णन पाया जाता हे की किस कारण से इसे एक पवित्र दिवस के रूप मे मनाया जाता हे । कुम्भ मेले १२ वर्ष के अंतराल से १२ बार होने पर उसे महा कुभ मेले भी कहा जाता हे ।अर्ध कुम्भ मेलें जो की ६ वर्ष की अंतराल मे होता हे उसे हरिद्वार या इलाहाबाद के प्रयाग और हरिद्वार मे मनाया जाता हे । पूर्ण कुम्भ मेले भारत के चार जगह मे मनाया जाता हे इसे नाशिक के गोदावरी नदी के तट पर ,हरिद्वार के गंगा ,उज्जैन के शिप्रा नदी मे और इलाहाबाद के प्रयाग मे जागा तीन नदी गंगा ,यमुना और सरस्वती का संगम हे वह स्थान पर मनाया जाता हे ।
मेले के आरंभ मे यहा लाखो श्रद्धालु कुटीर तो कोई टेंट लगा के रहते हे । यहा नागा साधू और तांत्रिक और साधको की भीढ़ देखने दुनिया के कोने कोने से लोग्ग आते हे । इनमे से कोई ऐसे भी होते हे जो नए दीक्षा लेते हे और अपने को सम्पूर्ण रूप से नागा साधु या तांत्रिक या फिर साधक के रूप मे समर्पित करते हे । तो कोई अपने चरो कल्पो के पाप हर्णे पाप नाशिनी गंगा मे डुबकी लगाने आते हे ।
ये महोत्सव हिन्दू धर्म के लिए सबसे पबितरा दिन माना गया हे । ये भारत मे रहने वाले हिन्दू के लिए महत्वपूर्ण दिन होते हे । क्यूकी इस लग्न मे मकर संक्रांति का त्योहार भी पूरे भारत मे मनाया जाता हे । जिस दिन पवित्र गंगा मे डुबकी लगाया जाता हे उसदिन सर्व प्रथम नागा साधु और साधको का एक विशाल रैलि निकलती हे जो गनग मे स्नान से समाप्त होता हे । गंगा मे स्नान से पूरब जो साधक और नागा साधू यहा कुतिया और टेंट बनाके रहते हे वह साधना मे लीन रहते हे । नागा साधु और साधक की रैलि की स्नान के पश्चयात ही आम श्रद्धालु को स्नान करने की अनुमति दिया जाता हे ।गंगा तो पाप नाशिनी हर दिन होता पर इस दिन ही क्यू इतना भीड़ ? आपके मन मे ये प्रश्न उठ रहे होंगे ? जारहसल बात यह हे की इशी दिन
जब समुद्र मंथन से निकला हुआ अमृत (जो की किसी भी वस्तु तो अमर बना दे ) भगवान नारायण के अवतार मोहिनी अपने साथ अमृतसे पूर्ण कलश (कुम्भ) को लेकर देवता और असुर को बाटने हेतु लीला कर रहे थे और कलश से चार बूंद चार अलग अलग जगह पर गिरि थी और इनहि चार जगह मे से एक इलाहाबाद के प्रयाग को माना जाता हे । अतः उस तिथि को याद करके ही यहा गंगा स्नान की परंपरा वर्षो से होती आ रही है ।
ये भारत के सबसे बड़े मेले हे जहा लोगो का सैलाब उमरता हे । ये आस्था ऐसी ही बनी रहे और ये विश्व शांति की संदेश मानवजाति को देते रहे।.
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