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Sunday, July 1, 2018

महभारत की सबसे शक्तिशाली योद्धा

महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धा कौन था?

हम सब जानते हे की द्वापर युग मे कौरव और पांडवो के बीच भयंकर विनाशकारी युद्ध हुआ था। बहुत रथी माहारथी से परिपूर्ण इस युद्ध मे ऐसे भी योद्धा थे जो एक ही बान में युद्ध को समाप्त करने की सामर्थ रखते थे। यह युद्ध किसी के लिए प्रतिसोध लेने के तो किसी के लिए आत्मसम्मान और किसी के लिए शक्तिप्रदर्शन का माध्यम बन चुका था।


इस युद्ध मे भगवान सरी कृष्ण ही ऐसा था जो सबसे शक्तिशाली थे । जो की स्वयम  परंब्रहम के अवतार थे जो अविनाशी हे लेकिन कृष्ण जी धर्म अधर्म के इस युद्ध मे सारथी बने थे और युद्ध मे भाग नहीं लिया था। अब आप के मन में ये प्रश्न उठेगा की आखिर मे कौन था ऐसा योद्धा जो की एक ही बान में युद्ध को समाप्त करने का सामार्थ रखता था। जब अर्जुन रणभूमि में अपने ही भाइयो और चाचा और गुरु के विपक्ष लड़ने गए तो वो आत्मग्लानि में धनुष को उठा नहीं पा रहे थे तभी कृष्ण ने अपने परंब्रहम रूप के दर्शन देकर अर्जुन को संसार के सत्य और असत्य का ज्ञान दिया था।इतने में भी अर्जुन को यह लगता था सायद कौरव की सेना में भी उनही की तरह कोई सोच रखता हो लेकिन अपनी अपनी आत्मीय धर्म का पालन करने हेतु युद्ध कर रहे हे। सायद कौरव के सेना में किसी को अपने शक्तियों का घमंड न हो ? अर्जुन के इस मनोबयथा को दूर करने के लिए ही कृष्ण जी ने युद्ध से पहले सभा का आयोजन किया और दोनों पक्ष के सभी महारथियो को इसमे आमंत्रित किया गया ।

सभा में कृष्ण ने सभी से राय मांगा की सबलोग बताए की कौन कितने दिनो में इस युद्ध को समाप्त कर सकता हे।प्रश्न के तुरंत ही जैसे सभी को अपने पराक्रम दिखाने की होड़ लग गयी। सहस्र भुजाओ का बल रखने वाला मल्ल युद्ध निपुण  दुर्योधन ने कहा की वो अकेले ही युद्ध को ३०दिनो मे समाप्त कर सकता हे । वही  धनुष विद्या के महारथी कृपाचार्य ने कहा की वो २० दिनो में ही युद्ध समाप्त कर सकता हे । इस क्रम में एक नाम जुड़ गए अस्वात्थामा (द्रोणाचार्य के पुत्र) की वो केवल १७ दिनों में युद्ध समाप्त कर सकता हे । द्रोणाचार्य ने कहा वो केवल १५ दिनों में युद्ध समाप्त कर देगा । अर्जुन भी अपनी शक्ति प्रदर्शन की लालसा में कह गए की वो भी केवल १४ दिनों में युद्ध समाप्त कर सकता हे। सूर्य पुत्र कर्ण कहा पीछे रहने वाले थे  कर्ण ने कहा की वो केवल १२ दिनों मे युद्ध समाप्त कर देगा । गंगा पुत्र भिस्म को  कृष्ण के इस लीला का भान था जानते हुये भी की सभी अपने शक्ति के अहंकार से यह बोल रहे हे धर्म के पथपर चलके किसिने युद्ध को शांति से हल करने के बजाय पराक्रम दिखाने का माध्यम बनाया हे। भिस्म ने कृष्ण के लीला को लीला रहने दिया और कहा की इस युद्ध को केवल सात दिनों में समाप्त कर सकता हे।इससे अर्जुन का मोह त्याग हुआ उन्हे पता चल गया की सभी उनसे युद्ध करने के लिए आतुर हे ।लेकिन कृष्ण को यह पता था इन सभी योद्धाओ से भी अति शक्तिशाली योद्धा था जो सभा में उपस्थित नहीं था और ये योद्धा रणभूमि की और युद्ध में भाग लेने आ रहा हे । वो योद्धा था बर्बरिक,
बर्बरिक भीम का पौत्र और घटोत्कच (भीम और हिडिंबा के पुत्र )और  मौरवी या फिर अहिल्यावती( नागराज वासुकि की पुत्री ) का पुत्र था। बर्बरिक को अस्त्र शस्त्र का ज्ञान अपने माँ ने प्रदान किया अपने दादी हिडिंबा से मायाबी विद्याओ का ज्ञान मिला था । फिर भी उतने में  संतूस्त न होकर उन्होने माँ आदिशक्ति की घोर तपस्या की और उन्हे  प्रशन्न कर उनसे वैष्णवयास्त्र प्राप्त की आदिशक्ति माँ ने और काईसारे घातक अस्त्र भी बर्बरिक को प्रदान किया था । जन्म से ही इतना बलशाली और यक्ष होने के बावजूतमानव रूप मे रहा माँ शक्ति प्रमुख भक्तो में से एक और मातृ सेवा से परिपूर्ण एक गुणवान पुत्र था बर्बरिक जो हमेशा अपने माँ के बात को नहीं टालता था। इतना तेजस्वी था की अनेकों सूर्य उनमे समा जाए ।इतने सारे शक्तियों के स्वामी होने के बाद भी वो विनम्र थे ज्ञान सागर से परिपूर्ण थे । बर्बरिक के माँ ने उनसे बचन मांगा था की वे हमेशा दुर्बल का  साथ दे। ऐसे में अगर वो पहले पांडवो का साथ देते तो पूरी कौरव सेना पलभर समाप्त कर देते और फिर कौरवो का पक्ष लेके पांडवो का नाश कर देते । 

अधर्मियों का नाश और धर्म की स्थापना हेतु  कृष्ण जी ब्राह्मण वेश में बर्बरिक की मार्ग रोक लेते हे और अपने मीठी मीठी बातों में उनको उलझाते हे ।  कृष्ण उनसे उनके अशिम शक्ति का प्रदर्शन करने को विवश कर उनको वचनवद्ध करवाता हे की उनके एक बाण से अगर एक पेढ़ के असंख्य पत्तियों को छेद बना पाये तो वो मार्ग से हट जाएगा और अगर वो ऐसा कर नहीं पाये तो कृष्ण जो उनसे माँगेगा उसको देना परेगा। बर्बरिक ब्राह्मण के वेश मे कृष्ण को पहचान लेता हे फिर भी कृष्ण के हाथो ही मृत्यु हो इसलिए चुनौती को स्वीकार कर लेता हे । बर्बरिक की एक बाण से ब्रिक्ष के सारे पत्तों मे छेद बन जाता हे मगर कृष्ण उससे पहले ही एक पत्ती अपने  पैर पर छिपा लेता हे। कृष्ण कुछ कहे उनसे पहले ही बर्बरिक उनसे कहता हे की आपने जो पत्ती अपने पेर पर छिपाया हुआ हे उसमे भी छेद बन गए हे । कृष्ण का भेद खुलने पर कृष्ण अपने स्वरूप में आता हे । बर्बरिक  कृष्ण से  कहता हे की ब्राह्मण वेश में कृष्ण को उसने पहले ही पहचान लिया था और कृष्ण की मार्ग रोकने की उद्येश्य को भी भलभती वे जानते हे। तपस्या करते वक़्त माँ शक्ति से उसने ये भी वरदान मांगी थि के किसी परंभ्रम चरचर अविनाशी से उनकी मृत्यु हो । आज उनके ये इच्छा भी पूर्ण होने जा रही हे । इतने माहान और विनाशकरी शक्तियों के स्वामी होने के बाद भी इतने उदार निर्मल मन के बर्बरिक से कृष्ण अति प्रशन्न होते हे और उनसे वरदान मांगने को कहते हे । बर्बरिक कृष्ण से वरदान मांगता हे की हे प्रभु में इस धर्म और अधर्म के युद्ध के आरंभ से अंत को अपनी आंखो से देखना चाहता हु। आपके द्वारा काही जाने वाले गीता की ज्ञान को में अपने कानो से भी सुन्न चाहता हु । में  आप इस युद्ध के दौरान अर्जुन को जो विराट स्वरूप दिखाने जा रहे हे उस रूप का दर्शन प्राप्त करना चाहता हु । तो बर्बरिक को आगे क्या होगा इसकी भी ज्ञान थी।कृष्ण तथास्तु कहते हुये अपने सुदर्शन चक्र से बर्बरिक का शीश धर से अलग कर देता हे और उसके शीश को  दिव्य चक्षु और दिव्य आयु प्रदान करता हे जिससे वो सम्पूर्ण युद्ध देख पाय । और उसके शीश को किसी एक उचे स्थान पे स्थित कर देता हे । युद्ध समाप्ती के बाद पाँच पांडवो को कृष्ण अपने साथ बर्बरिक के पास लेकर आता हे । कृष्ण उनका परिचय करवाता हे पांडवो से । कृष्ण बर्बरिक से पूछता हे की उसने इस्स युद्ध में क्या देखा ? तभी भीम स्वम ही अपनी प्रशंग्शा करता हे की उसने देखा होगा कैसे मैंने दुर्योधन का वध किया । अर्जुन कहता हे क्या तुमने देखा की मैंने कैसे भिस्म, कर्ण ,द्रोणाचार्य,कृपाचार्य  जैसे महारथियो का वध किया ? तभी बर्बरिक का अट्टहास सभी को अचम्बित कर देता हे । बर्बरिक अट्टहास के साथ कहता हे की मैंने तो सिर्फ कृष्ण का सुदर्शन चक्र को युद्ध भूमि में सत्रुवों का विनाश करते देखा । न तो उसमे भीम का बाहुबल न ही उसमे अर्जुन की गाँडीव के तीर थे । जो कुछ भी आज जीवित हे वो केवल और केवल प्रभु कृष्ण के कारण ही । इससे भीम और अर्जुन को अपने अहंकार का आभास होता हे और लज्जित होते हे । यह उस बात को प्रमाणित करते हे की महाभारत के युद्ध में कोई  सर्ब्शक्तिमान था तो वो श्री कृष्ण के अलावा और कोई नहीं था । उसके बाद किसिका स्थान आता हे तो वो बर्बरिक ही होगा । जिसकी तीन बाण से युद्ध  पालकझपकते ही शेश हो जाता । एक बाण से सत्रुवों का सम्पूर्ण सेना का विनाश एक बाण से अपने और सेनाओ का आत्मरक्षण और एक बाण से सत्रुवों के जीतने योद्धा सब का विनाश । इसी महानता के लिए बर्बरिक महाभारत काल से भारत के कई राज्यो में अलग अलग नाम से पूजे जाते हे । राजस्थान में खाटू श्यामजी ,बलियादेव नाम से   गुजरात में  पूजे जाते हे ।

हमारे अगले ब्लॉगिंग में जनिएगा खाटुश्याम जी के पूजा के तिथि और विधि और उसके लाभ के बारे में। खाटुश्याम जी सबकी मनोकामना पूरी करे धन्न्याबाद।











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